लगभग पाँच दशक पहले वैज्ञानिक मानवशक्ति समिति की अनुशंसाओं के आलोक में भारत सरकार के तत्कालीन शिक्षा विभाग द्वारा “व्यावहारिक प्रशिक्षण वृत्ति योजना” का आरंभ नये अभियांत्रिकी स्नातकों एवं डिप्लोमाधारकों को व्यावहारिक प्रशिक्षण प्रदान करने के उद्देश्य से किया गया था। इस योजना का क्रियान्वयन भारत सरकार के शिक्षा विभाग द्वारा सीधे तौर पर नई दिल्ली में किया गया। आरंभ में जिन उद्योगों/संस्थानों ने इस योजना में स्वेच्छा से भाग लिया था उनसे अनुरोध किया गया कि वे प्रशिक्षुओं को दी जाने वाली वृत्तियों की आधी राशि का वहन करें। चूँकि इस योजना के प्रति उद्योगों/संस्थाओं की प्रतिक्रिया बहुत ही उत्साहवर्द्धक थी और जरूरतमंद उम्मीदवारों द्वारा प्रशिक्षण की माँग लगातार बढ़ रही थी अतः इस योजना का क्रियान्वयन की दृष्टि से इसके चार क्षेत्रीय केंद्रों में विकेंद्रीकरण कर दिया गया। प्रशिक्षण प्राप्ति की मांग बहुत बढ़ रही थी इसलिये सरकार द्वारा प्रशिक्षुता/व्यावहारिक प्रशिक्षण हेतु क्षेत्रीय बोर्डों की स्थापना चेन्नई, कानपुर, मुम्बई और कोलकाता में 1969 में स्वायत्तशासी निकायों के रूप में की गयी जिनमें औद्योगिक संघों एवं संगठनों, राज्य सरकारों एवं अन्य व्यावसायिक निकायों को प्रतिनिधित्व प्राप्त था।
इस प्रकार इस योजना का क्रियान्वयन इन बोर्डों में निहित किया गया जिसका एकमात्र उद्देश्य था प्रशिक्षु अधिनियम 1961 एवं 1973 में इसके संशोधित रूप के प्रावधानों के अनुसार अभियांत्रिकी स्नातकों/तकनीशियनों को स्वतंत्र रूप से प्रशिक्षुता प्रशिक्षण प्रदान करना। इस अधिनियम में वर्ष 1986 में पुनः संशोधन हुआ ताकि 10+2 व्यावसायिक शिक्षा संस्थानों कनिष्ठ महाविद्यालयों और इन्टरमीडिएट पास छात्रों को भी इस अधिनियम के प्रावधानों के दायरे में लाया जा सके। प्रशिक्षुओं की इस नई कोटि को तकनीशियन (व्यावसायिक) प्रशिक्षु कहा गया। इन क्षेत्रीय बोर्डों की स्थापना के बाद इस पीटीएस योजना का हस्तांतरण क्षेत्रीय बोर्डों को कर दिया गया और उन्हें इस योजना को लागू करने पूरी जिम्मेवारी और प्रशासनिक स्वायत्तता प्रदान की गयी।
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सामग्री व्यावहारिक प्रशिक्षण के शिक्षुता प्रशिक्षण / बोर्ड के बोर्डों द्वारा प्रदान की
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